इंदौर (ईन्यूज एमपी)-बड़े अस्पताल में मरीज अव्यवस्था का शिकार हो रहे हैं। कुछ दिन पहले ब्लड टेस्ट किट खत्म हुई थी और अब एक्सरे फिल्म खत्म हो गई। कई दिनों से फिल्म नहीं है और मरीज परेशान हो रहे हैं। कर्मचारी एक्सरे तो कर रहा है लेकिन फिल्म और रिपोर्ट देने के बजाय कम्प्यूटर स्क्रीन का मोबाइल से फोटो लेने को कहा जा रहा है। डॉक्टर यही फोटो देख परेशानी का अंदाजा लगाकर इलाज कर रहे हैं। आईनेक्स्ट की रिपोर्ट-- -- अधिकारियों की बड़ी-बड़ी बातों की हकीकत, न साधन सुविधा पर्याप्त और न ही समय पर मिल पा रहा इलाज -- एमवाय अस्पताल में हर रोज हो रहे 400 से ज्यादा मरीजों के एक्सरे -- न डिजिटल एक्सरे फिल्म और न कन्वेंशनल आईनेक्स्ट रिपोर्टर, इंदौर एमवाय अस्पताल के कायाकल्प के नाम पर चिकित्सा शिक्षा विभाग करोड़ों खर्च कर चुका है। बिल्डिंग की मरम्मत और कुछ मशीनों की साज सम्भाल पर 20 करोड़ रुपए खर्च होने की बात कही जा रही है, फिर भी मरीजों की परेशानी कम नहीं हो रही। आधुनिक सुविधाओं के बीच मरीज का इलाज करना तो दूर यहां साधन, संसाधनों की भी ठीक से आपूर्ति नहीं की जा रही। थोड़े-थोड़े दिन में कोई न कोई सामान, उपकरण खत्म हो जाता है और मरीजों को परेशानी झेलना पड़ती है। कई दिन से यहां एक्सरे फिल्म नहीं होने के कारण अव्यवस्था हो रही है। अधिकारी आश्वासन देने के सिवा कुछ नहीं कर पा रहे। एक दिन में होते हैं 400 एक्सरे रेडियोलॉजी विभाग के अधिकारी भी इस बात को मान रहे हैं कि खपत ज्यादा और एक्सरे फिल्म की उपलब्धता कम होने के कारण कई बार समस्या होती है। यहां का स्टाफ इस बार 15 दिन से भी ज्यादा बार से फिल्म खत्म होने की बात स्वीकार रहा है। कन्वेंशनल और डिजिटल दोनों मिलाकर 400 से ज्यादा मरीजों के एक्सरे रोज किए जाते हैं। इनमें ओपीडी, आईपीडी, एमएलसी सहित सभी तरह के मरीज शामिल हैं। कई बार ऐसा होता है कि एक मरीज के दो या तीन एक्सरे भी करना होते हैं। इस स्थिति में यहां सैकड़ों एक्सरे फिल्म हर रोज लगती है। मरीजों की यह संख्या न्यूनतम है। कई बार इससे ज्यादा संख्या में मरीज पहुंचते हैं और एक मरीज के दो या तीन एक्सरे होने के कारण फिल्म की खपत भी बढ़ जाती है। मरीज भुगत रहे खामियाजा एक्सरे फिल्म खत्म हो जाने के कारण बढ़ी अव्यवस्था का सबसे ज्यादा खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। हड्डी रोग, पेट, न्यूरो सहित सभी विभागों के मरीजों को अलग-अलग समस्याओं के चलते एक्सरे करवाने की सलाह दी जाती है। डॉक्टर की पर्ची लेकर मरीज तल मंजिल पर जाते हैं तो उन्हें 51 नंबर कमरे में जाने को कहा जाता है। यहां एक्सरे करने वाला स्टाफ फिल्म नहीं होने का हवाला देकर पहले इनकार कर देता है। बाद में कहा जाता है कि एक्सरे का प्रिंट भी नहीं मिलेगा। आखिरकार कहा जाता है कि मोबाइल से कम्प्यूटर स्क्रीन का फोटो ले लेना और डॉक्टर को दिखा देना। थक-हारकर मरीज यही करता है। रिपोर्ट भी देने को तैयार नहीं विभागीय अधिकारियों का कहना है कि फिल्म नहीं होने के कारण भले ही प्रिंट नहीं मिल रहे हो, लेकिन लिखित रिपोर्ट तैयार कर दी जा रही है। हकीकत कुछ और है। मरीज को इसकी लिखित रिपोर्ट भी नहीं मिल रही है। डॉक्टर भी इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि रेडियोलॉजिस्ट का काम रिपोर्ट तैयार करके देना, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा। कर्मचारी अपनी मेहनत बचाने के लिए रिपोर्ट भी बनाकर नहीं दे रहे और मरीज चक्कर खाता रहता है। कई बार डॉक्टर उन्हें रेडियोलॉजी में दोबारा पहुंचाते हैं कि रिपोर्ट देखना पड़ेगी, लेकिन यहां से उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ रहा है। अगर कोई मरीज डॉक्टर को जरूरत होने पर यहां आग्रह करता भी है तो उसे अगले दिन या फिर एक दिन छोड़कर आने को कहा जाता है। अनुमान के आधार पर हो रहा इलाज पूरी प्रक्रिया में डॉक्टर भी मजबूर हैं। डॉक्टर भी आधे-अधूरे मन से इलाज कर रहे हैं। नाम नहीं छापने के अनुरोध पर एक डॉक्टर ने बताया कि कई बार हड्डी टूटने और दूसरी समस्याओं में आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है, लेकिन कई बार इतनी बारीक समस्या होती है कि फिल्म को गौर से देखना जरूरी होता है। प्रिंट रिपोर्ट भी देखना होती है, लेकिन दोनों ही नहीं मिल पाने से असमंजस की स्थिति बनती है। इस कारण अनुमान के आधार पर ही इलाज शुरू करना होता है। डॉक्टर रेडियोलॉजी में शिकायत करते हैं लेकिन यहां का स्टाफ स्टोर में और स्टोर वाले ऑर्डर पर डिलिवरी नहीं होने का मामला बताकर इसे टाल देते हैं। पूरी सरकारी प्रक्रिया में मरीज और परिजन लापरवाही का शिकार होते हैं। जिन के पास मोबाइल नहीं, उनका इलाज नहीं इस पूरे घालमेल के कारण उन मरीजों या परिजन की फजीहत होती है, जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं होता है। वे फोटो नहीं खींच नहीं पाते हैं। स्टाफ भी इस बात को मान रहा है कि हर रोज ऐसे कई उम्रदराज और ग्रामीण मरीज आते हैं जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं होता। ऐसे में उन्हें किसी और पर निर्भर रहना पड़ता है। कई बार मरीज के परिजन के मोबाइल से फोटो लिया जाता है तो कई बार उन्हें इनकार कर दिया जाता है। इस तरह के हालात में पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़े हो रहे हैं। रेडियोलॉजी विभाग के अधिकारी सप्लाय में देरी होने की बात कर रहे हैं तो अधीक्षक स्तर पर ऑर्डर में देरी होने का हवाला दिया जा रहा है। अधिकारियों के बीच समन्वय की कमी और इस तरह की लापरवाही के चलते सरकार के करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद मरीजों को सटीक इलाज नहीं मिल पा रहा है।