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बान ने कहा, Сघड़ी की सुई जलवायु से पैदा होने वाली तबाही की ओर घूम रही हैТ

ले बोर्जे (फ्रांस) : जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन के अंतिम चरण की वार्ता में सोमवर को संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने एक कड़ा बयान दिया। बान ने भारत सहित दुनिया भर के पर्यावरण मंत्रियों से कहा कि जलवायु परिवर्तन से तबाही का खतरा मंडरा रहा है और इससे निपटने के लिए एक ठोस समझौते तक पहुंचने की खातिर Сआधे-अधूरेТ उपायों से काम नहीं चलेगा।
शिखर सम्मेलन के दौरान निर्णायक वार्ता के लिए यहां इकट्ठा हुए 195 देशों के नीति-निर्माताओं से बान ने कहा, Сघड़ी की सुई जलवायु से पैदा होने वाली तबाही की ओर घूम रही है।Т ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन पर नियंत्रण के लिए एक ठोस समझौते को अंतिम रूप देने की उम्मीद के बीच विभिन्न देशों के मंत्री यहां आए हैं। भारत इस अत्यंत महत्वपूर्ण वार्ता में अपनी अहम भूमिका देख रहा है।

बान ने कहा, Сदुनिया आपसे आधे-अधूरे उपायों और सक्रिय रख से कहीं ज्यादा की उम्मीद कर रही है। यह एक ऐसे समझौते का आह्वान कर रही है जिससे सही मायने में बदलाव हो। दीर्घकालिक शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए पेरिस को दुनिया को पटरी पर लाना होगा।Т उन्होंने कहा, Сआप यहां जो फैसले करेंगे वह सदियों तक गुंजायमान रहेगा।Т

पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर 195 देशों के अपने समकक्षों के साथ 48 पन्नों के एक मसौदे पर मंथन करने के लिए यहां पहुंच चुके हैं। पिछले हफ्ते निचले स्तर के वार्ताकारों द्वारा तैयार किए गए 48 पन्नों के इस मसौदे में अब भी कई बेहद अहम मुद्दे अनसुलझे हैं। यह मसौदा वह आधार तैयार करेगा जिस पर जावड़ेकर सहित दुनिया भर के मंत्री एक बाध्यकारी समझौते को अंतिम रूप देने की पुरजोर कोशिश करेंगे।

बान ने कहा, Сइस हफ्ते यहां आपका काम गरीबी मिटाने, स्वच्छ ऊर्जा क्रांति शुरू करने और कल के लिए नौकरियां, मौके और उम्मीद दिलाने में मदद कर सकता है।Т

जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर चल रहा 12 दिवसीय शिखर सम्मेलन अपने अंतिम सप्ताह में प्रवेश कर चुका है। मंत्री-स्तरीय वार्ता में वार्ताकार आश्वस्त नजर आ रहे हैं कि अगले सप्ताहांत से पहले समझौते पर सहमति बन जाएगी और 2009 में हुए कोपेनहेगन शिखर सम्मेलन के दोहराव की नौबत नहीं आएगी जो बुरी तरह नाकाम रहा था। विश्लेषकों का कहना है कि इस बात की संभावना बहुत कम है कि पेरिस में होने वाला कोई भी समझौता वैश्विक तापमान को 2.0 डिग्री सेल्सियस या इससे कम रखने के लक्ष्य को पूरा कर पाएगा।

साल 2009 में अमीर देशों ने प्रण किया था कि वह विकासशील देशों के लिए 2020 से जलवायु वित्त कोष में एक साल में 100 अरब अमेरिकी डॉलर जुटाएंगे। भारत सहित विकासशील देश उनसे मांग करते रहे हैं कि वे जल्द से जल्द कोष का लाभ और स्वच्छ ऊर्जा मुहैया कराएं ताकि ग्रीनहाउस गैसों के प्रदूषण में कटौती की जा सके। कल जावड़ेकर ने कहा था कि भारत पेरिस में जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन को पिछले सम्मेलनों की तरह नाकाम न होने देने के लिए प्रतिबद्ध है जिनमें सारे देश Сझूठी आशाएं और काल्पनिक उम्मीदोंТ के साथ लौटे थे। भारत ने कहा कि वह सुनिश्चित करेगा कि अमीर देश कार्बन स्पेस पर भुगतान करने के वादे को निभाएं। जावड़ेकर ने कहा कि भारत पेरिस सम्मेलन को अपने उद्देश्यों में नाकाम नहीं होने देगा। उन्होंने कहा कि भारत सुनिश्चित करेगा कि कॉमन बट डिफरेंशिएटेड रिसपॉन्सिबिलिटीज (सीबीडीआर) के सिद्धांत का सम्मान किया जाए।

उन्होंने कहा, Сभारत पिछले सम्मेलनों की तरह पेरिस सम्मेलन को विफल नहीं होने देगा। भारत के लिए यह 1.27 अरब लोगों की मौजूदा जिंदगी और भविष्य का सवाल है जिनमें विकास की आकांक्षा है। हम इस सम्मेलन को इसके उद्देश्यों में नाकाम नहीं होने देंगे।Т

जावड़ेकर ने इससे पहले कहा था, Сभारत बहुत सक्रियता से हिस्सा ले रहा है, हमारा रख सकारात्मक है। भारत पहले विरोध का रख अपनाता था जबकि अब हम सुझाव देने का काम कर रहे हैं। जैसे भारत ने सौर गठबंधन की पहल की। भारत Сमिशन इनोवेशनТ का साझेदार बना। हम कई चीजों पर सुझाव देंगे। उन सबकी योजना है।Т

उन्होंने कहा था, Сभारत पेरिस से आने वाले अंतिम परिणाम को लेकर काफी सकारात्मक है। भारत लचीला रख अपनाएगा और दुनिया को दिखाएगा कि भारत समस्या का हिस्सा भले ही न हो, लेकिन समाधान तलाशने वालों में से एक है।Т केंद्रीय मंत्री ने कहा, Сवक्त की मांग है कि विकसित देश जो कहते हैं वह करें। 2020 से पहले की उनकी प्रतिबद्धता पर उन्हें ज्यादा महत्वाकांक्षी योजना के साथ आना चाहिए।Т जावड़ेकर ने कहा कि विकसित देशों को जलवायु रक्षा के लिये अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अभीष्ठ योगदान (आईएनडीसी) के तहत ही अलग से एक योजना भी सामने रखनी चाहिए जो अभी की आईएनडीसी में 2020 से पहले के उनके लक्ष्य शामिल हैं। अपने संबोधन में बान ने आज यह भी कहा कि विकसित देशों को Сअगुवाई करने पर सहमत होना चाहिएТ और विकासशील देशों को अपनी क्षमताओं के अनुसार ज्यादा जिम्मेदारी उठाने की जरूरत है।Т

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