भोपाल(ईन्यूज एमपी)- शिवपुरी का करैरा और ग्वालियर का घाटीगांव सोनचिरैया अभयारण्य स्थानीय स्तर पर इस बार भी चुनावी मुद्दा रहेगा। इस स्थिति को भांपते हुए राज्य सरकार ने करैरा के 202 वर्ग किमी और घाटीगांव के 80 वर्ग किमी क्षेत्र को डी-नोटिफाई (समाप्त करना) करने की तैयारी शुरू कर दी है। वन विभाग ने यह प्रस्ताव शासन को भेज दिया है, जो जल्द ही कैबिनेट में जाएगा। हालांकि राज्य सरकार के फैसले से ही दोनों जगह के निवासियों को राहत नहीं मिलेगी। यह मामला केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय जाएगा। इसलिए जल्द राहत की उम्मीद कम है। स्थानीय जनता दोनों अभयारण्यों को समाप्त करने की मांग पिछले 20 साल से कर रही है। सरकार भी दोनों को डी-नोटिफाई करने का वादा 2010 से कर रही है। 2014 में प्रस्ताव भी तैयार किया गया, लेकिन अब तक दोनों डी-नोटिफाई नहीं हुए हैं। यह मामला केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तक जा चुका है। मंत्रालय ने दोनों अभयारण्य को डी-नोटिफाई करने के बदले दूसरे संरक्षित क्षेत्र में जमीन जोड़ने की शर्त रखी थी। इसे अब पूरा करने की कोशिश की जा रही है। वन विभाग ने दोनों अभ्यारण्य के बदले कुनो पालपुर में 400 वर्ग किलोमीटर जमीन जोड़ने का प्रस्ताव दिया है। इससे गुजरात सरकार की शर्त भी पूरी हो रही है। मप्र को बब्बर शेरों की शिफ्टिंग के लिए बनी एक्सपर्ट कमेटी ने कुनो अभयारण्य का क्षेत्र बढ़ाने और उसे नेशनल पार्क का दर्जा देने की मांग रखी है। घर-जमीन बेच-खरीद नहीं पा रहे वर्ष 1981 में बना करैरा अभयारण्य का पूरा क्षेत्र राजस्व भूमि है। इसमें 33 गांव हैं। जहां के किसान एवं रहवासी अभयारण्य के नियम लागू होने की वजह से जमीन-मकान खरीद और बेच नहीं पा रहे हैं। वे लगातार मांग कर रहे हैं कि सोनचिरैया नहीं है तो अभयारण्य क्यों बना रखा है। यह समस्या हर चुनाव में मुद्दा बनती है। वहीं 512 वर्ग किमी में फैले घाटीगांव अभयारण्य को भी डी-नोटिफाई किया जाना है। वहां भी यही समस्या है। हालांकि वन विभाग अभयारण्य का आबादी से सटा 80 वर्ग किमी क्षेत्र कम करेगा। शेष क्षेत्र सामान्य वनभूमि के तौर पर मान्य रहेगा। घाटीगांव में 24 साल से नहीं दिखी सोनचिरैया घाटीगांव में पिछले 24 साल और करैरा में छह साल से सोनचिरैया नहीं दिखाई दी है। यह जानकारी विधानसभा के बजट सत्र में वनमंत्री डॉ. गौरीशंकर शेजवार दे चुके हैं। विधानसभा में दिए जवाब में सरकार ने यह भी माना है कि क्षेत्र में अवैध खनिज खनन के कारण सोनचिरैया के रहवास पर असर पड़ रहा है। दो साल में 66 लाख से ज्यादा खर्च विधानसभा में दी जानकारी में विभाग ने बताया है कि करैरा में सात कर्मचारी कार्यरत हैं। इनके वेतन भत्तों पर वित्तीय वर्ष 2015-16 से 2017-18 तक 14 लाख 88 हजार 215 रुपए खर्च किए गए हैं। जबकि घाटीगांव अभयारण्य में 51 कर्मचारी कार्यरत हैं। उन पर और सोनचिरैया संरक्षण पर वित्तीय वर्ष 2015-16 से 2017-18 तक 51 लाख 17 हजार 962 रुपए खर्च किए गए हैं।