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माता -पिता ही मनुष्य के रूप ईश्वर का प्रत्यक्ष चलता-फिरता स्वरुप : बटुकजी

विदिशा(ईन्यूज एमपी)- ग्राम अटारीखेजडा मे चल रही श्रीमद भागवत कथा के चौथे दिन गुरूवार को गौवत्स पं. अंकितकृष्ण जी महाराज (वटुकजी) ने भक्त को दुकानदार और ग्राहक को भगवान बताते हुए कहा कि परमात्मा से प्रीति करो। राम से प्रीति करोगे तो मोक्ष की प्राप्ति होगी। उन्होने कहा कि ये दुकान दूसरे प्रकार की है ।इसमे दुकानदार को पता नही होता कि उसके दुकान मे सामान है कि नही। इसमे ग्राहक रूपी भगवान तब आता है ,जब आंखे बंद करके ध्यान लगाया जाये। आंख खु्लते ही गायब हो जाता है।

वटुकजी महाराज ने कहा कि संकोच मत करो कि दुकान लगाऊ ग्राहक आयेगा की नही आयेगा और ये भी मत सोचो कि मेरे पास पूजा अर्पण के लिए कुछ भी नही है। डरो मत जैसे सड़क के किनारे सब्जी वाला दुकान लगा लेता है,जिससे उसकी आजीविका चलती रहती है ।वह यह नही सोचता कि मेरे पास फर्नीचर, अच्छी जगह, मकान होगे तभी दुकान लगाऊगा।इसलिज तुम जहा कही भी रहो उसका नाम जरूर लो ।सनातनी बनो। सच्चे सेवक बनो। तर्क-वितर्क मत होने दो। आस्था को प्रबल होने दो। याद रखना आप जहा पर राम जपते हो वही अयोध्या बन जाती है वटुकजी महाराज ने गजेन्द्र हाथी का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि गजेन्द्र ने ग्राह के पावं पकडने पर अपने बल का सारा प्रयोग स्वंयम को बचाने मे लगा दिया फिर भी स्वयं को नही बचा पाया , अंत मे जैसे ही भगवान का नाम स्मरण किया तो भगवान ने प्रकट होकर गजेन्द्र का कल्याण किया ।वटुकजी ने कहा कि परमात्मा के जैसा भिखारी कोई नही। वह झोली फैलाए रोज मांगता फिरता है लेकिन वह बोलता नही आंख बंद करो तो आ जाता हैजैसे ही आंख खुली वह गायब। जिस प्रकार दैत्यराज बलि ने राक्षस कुल मे जन्म लिया फिर भी अपने मूल संस्कारो को नही भूला और सदैव मौन होकर भगवान का स्मरण करता रहा जिसके कारण स्वंय जगत के नियंता भगवान नारायण राजा बलि के द्वार पर मांगने आए और राजा बलि की भक्ति से प्रसन्न होकर सुतल लोक मे बलि के द्वारपालबन गये।वटुकजी ने कहा कि शब्द ज्ञान होना अलग है ब्रह्म ज्ञान होना अलग है कथा के प्रसंग के भाव को समझे तब आगे बढे। वटुकजी ने भागवत महापुराण के नवम स्कंध मे मर्यादा पुरूषोतम भगवान राम की कथा सुनाते ही कहा कि राम ने अयोध्या मे प्रकट होकर जगत को बताया कि किस प्रकार जीव को मर्यादित होकर ग्रहस्थ आश्रम मे रहकर कर माता-पिता, गुरु ,परिवार ,समाज की सेवा के दायित्व का निर्वाह करना चाहिए आज कि संतान संस्कार शून्य होकर माता-पिता का अनादर कर रही है जिससे प्रतिदिन वृध्द आश्रमो मे वृध्द माता-पिता कि सख्या बढती जा रही है माता -पिता ही मनुष्य के रूप ईश्वर का प्रत्यक्ष चलता-फिरता स्वरुप है। कथा मे जैसे हि महाराज जी ने कृष्णजन्मोत्सव की लीला का वर्णन किया तो कथा के मुख्य यजमान नंदबाबा के रूप मे टोकली मे भगवान बालकृष्ण लाल की दिव्य झाकी को लेकर आए श्रोताओ से खचाखच भरे पंडाल मे सभी नंद घर आनंद भयो की धुन पर नृत्य करने लगे ।आयोजको ने सभी श्रोताओ पर फूलो की बर्षा की , इस दौरान माखन, मिश्री, टोफी आदि बधाई मे प्रसाद के रूप सभी श्रोताओ को वितरण किए ,इस दौरान विदिशा से पधारे धर्मश्री के अध्यक्ष मनोज कटारे, सनातन श्री हिंदू उत्सव समिति के अध्यक्ष संजीव शर्मा, अतुल तिवारी, विजय दीक्षित, बंटी महाराज, गगन शर्मा,सचिन शर्मा आदि ने कथा श्रवण करके महाराज जी से आशीर्वाद प्राप्त किया, कथा मे शुक्रवार को छप्पन भोग लगाये जायेगे, कथा प्रतिदिन दोपहर 2 से 5बजे चल रही है जिसमे आसपास के गावो से अनेक श्रध्दालु पहुच रहे है....।

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