भोपाल(ईन्यूज एमपी)- भौगोलिक संकेतक पंजीयन चेन्न्ई द्वारा प्रदेश की धान को बासमती की मान्यता नहीं देने के फैसले के खिलाफ मध्यप्रदेश सरकार ने मद्रास हाईकोर्ट में अपील दायर कर दी है। सरकार का दावा है कि प्रदेश में बासमती धान बहुतायत में पैदा होती है। इसे जीआई टैग नहीं देने से न सिर्फ किसान हतोत्साहित हैं, बल्कि व्यापार भी प्रभावित हो रहा है। वहीं, प्रदेश का बासमती धान अभी भी दूसरे नामों से करीब 70 फीसदी बाहर ही जा रही है। यह कारोबार सालाना तीन हजार करोड़ रुपए के आसपास है। जीआई टैग मध्यप्रदेश का हक है, इसलिए इस लड़ाई को किसी भी स्तर पर जाकर लड़ा जाएगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले दिनों दिल्ली में केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात कर राज्य का रुख साफ कर दिया है। कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि भौगोलिक संकेतक पंजीयन कार्यालय ने एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (एपीडा) द्वारा 15 मार्च 2018 को प्रस्तुत तथ्यों को आधार बनाकर फैसला दिया है कि मध्यप्रदेश का धान बासमती नहीं कहलाएगा। यह निर्णय ऐतिहासिक तथ्यों को दरकिनार करने वाला है। प्रदेश के 13 जिलों में 105 सालों से बासमती किस्म की धान का उत्पादन हो रहा है। मध्यप्रदेश की एग्रो बायो क्लाइमेटिक कंडीशन पर राज्य के बासमती के प्रयोगशाला परीक्षण प्रदेश के दावे का समर्थन करते हैं। यही वजह है कि जीआई रजिस्ट्री के फैसले के खिलाफ प्रदेश सरकार ने मद्रास हाईकोर्ट में अपील दायर की है। प्रमुख सचिव कृषि डॉ. राजेश राजौरा का कहना है कि प्रदेश की धान को जीआई टैग न मिले, इसकी कोई वजह नहीं है। सभी तथ्य हमारे पक्ष में है। पहले जीआई रजिस्ट्री मप्र के हक में फैसला भी सुना चुकी है पर एपीडा के विरोध के चलते मामला उलझा हुआ है। राज्य सरकार ने तय किया है कि किसानों के हक की इस लड़ाई को अंतिम दम तक जारी रखा जाएगा।