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प्रधानमंत्री आवास योजना में अधिकारी लगा रहे पलीता....

सतना (ईन्यूज एमपी)-भृष्टाचार की चाशनी में बिना डूबे सरकार की कोई भी योजना चल नही सकती, सतना में स्वीकृत 29 हजार प्रधानमंत्री आवास में 18 हजार कंप्लीट हो गये, जनप्रतिनिधियो ने पूजा अर्चना कर हितग्राहियों को गृह प्रवेश भी करा दिया गया, अपनी वाहवाही करने के लिए अफसरों ने फोटो खींचकर ऑनलाइन विभागीय पोर्टल में डाल भी दिया गया, लेकिन जब सतना की मीडिया ने पीएम आवास योजना का ग्राउंड रियल्टी चेक किया तो योजना के जिम्मेदार अफसरों और सत्ताधारियो की कलाई खुल गयी ।


गरीब निरीह बेसहारा हितग्राहियों को पीएम आवास योजना के तहत पक्के मकान देने का ढिंढोरा पीटने वाली सत्ताधारी सरकार और उनके जनप्रतिनिधियों की पोल सतना की सतना की मीडिया ने खोलकर रख दी है, बड़े बड़े दावे करने वाले सरकारी अफसरों की सच्चाई सामने आ गई है, सतना के दिदौंद गांव में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बने बहत्तर मकान अधूरे पड़े हैं, मकान के सामने हिस्से में छपाई कराके दरवाजे लगा दिये गये, मकान के बाहर पुताई कराकर निर्माण पूर्ण दिखा दिया गया, लेकिन मकान के अंदर इंसान तो इंसान जानवरो के रहने लायक भी नही है, मकान के अंदर का हाल बेहाल है, न फर्स, न दीवारों में छपाई, न छत की छपाई, न शौचालय, कुछ मकानों की तो छत तक गायब है, अधिकारियों ने ऑनलाइन पोर्टल में कार्य पूर्ण होने की घोषणा कर दी गयी और रकम निकाल ली, लेकिन हितग्राहियों को कारीगर और लेबर भुगतान का पैसा तक नही दिया गया, गरीब बैंक के चक्कर लगाते लगाते थक हार कर बैठ गये है, भृष्टाचारी अफसरों ने सतना सांसद को बुलाकर निरीक्षण कराया गया और पूजा अर्चना करके हितग्राहियों का गृह प्रवेश करा दिया गया, चुनावी वर्ष में सियासत की बजाय श्रेय लेना ज्यादा फायदेमंद होता है, सांसद साहब भी सब कुछ देखकर भी अनजान बने रहे, और नेतागिरी चमकते हुये हितग्राहियों को पक्का मकान सौपने की फोटो खिंचवाने से नहीं चूके, जब सतना का जब सतना का मीडिया ग्राउंड रियलिटी चेक करने दिदौंद गांव पहुंचा तो गरीब हितग्राहियों की जुबान से सच्चाई बाहर आने लगी ।

- दिदौन्द गांव पीएम आवास योजना के भ्रष्टाचार का महज नमूना है, कमोवेश पूरे जिले में इस योजना का यही हाल है, विपक्षी विधायक सब कुछ जानते हैं, विधानसभा में सवाल भी उठाते हैं, नीचे से लेकर ऊपर तक सब कुछ फिक्स होता है, आंकड़ों की बाजीगरी दिखाकर सरकार और उनके अफसर कुछ सुनने और करने को तैयार ही नहीं है, एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि का इस तरह असहाय होना लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है ।

योजना के जिम्मेदार अफसर ऐसी. ऑफिस की नरम गद्देदार कुर्सियों में बैठकर केवल आंकड़े बाजी में लगे हुए हैं, गरीब हितग्राहियों की परेशानी और योजना की सतही हकीकत से भला उन्हे भला क्या लेना देना, अपने कारनामे में जब फ़सते हैं तो मातहत कर्मचारियों पर जिम्मेदारी थोप देते हैं ।

भूमिहीन बेघर गरीब बेसहारा लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना "एक घर अपना घर" उम्मीद की किरण बनकर आई थी, लेकिन यह सरकारी अफसर सरकार की नेक नियति को पलीता लगाने में जुटे हुए हैं ।

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