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हिंदी भाषा में लेखन कार्यशाला का हुआ समापन......

भोपाल ( ईन्यूज़ एमपी ) - हिंदी विश्‍वविद्यालय और मेपकॉस्‍ट के संयुक्‍त तत्‍वावधान में चल रही दो दिवसीय कार्यशाला का शनिवार को विज्ञान भवन में समापन हुआ। समापन सत्र में प्रदेश के राजस्‍व मंत्री उमाशंकर गुप्‍ता ने मां सरस्‍वती पर माल्‍यार्पण कर कार्यक्रम की शुरूआत की। हिंदी भाषा में तकनीकी,चिकित्‍सा एवं वैज्ञानिक अकादमिक लेखन,अनुवाद एवं प्रकाशन विषय पर दो दिवसीय कार्यशाला में कला और समाज विज्ञान के अलावा अभियांत्रिकी,पैरामेडिकल के साथ विज्ञान और वाणिज्‍य की हिंदी माध्‍यम में किताबे लिखने पर सहमति बनी।

कार्यक्रम की शुरूआत में हिंदी विश्‍वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. रामदेव भारद्वाज ने कार्यशाला के दौरान पारित हुए प्रस्‍ताव की जानकारी दी। कार्यक्रम में उपस्थित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् के महानिदेशक डॉ. नवीन चंद्रा ने बताया कि देश के लगभग 70 प्रतिशत लोग मातृभाषा में बोलते समझते हैं। लेकिन इसके बावजूद विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में हिंदी भाषा में काम नहीं हो रहा है। राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुनील कुमार गुप्‍ता ने बताया कि मातृभाषा से ही हमारी पहचान है,लेकिन भाषा के कारण ग्रामीण परिवेश के स्‍टूडेंट इंजीनियरिंग और मेडिकल जैसे कोर्सों में सफल नहीं हो पा रहे हैं। समापन सत्र में मौजूद अंतर्राष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय वर्धा के कुलपति प्रो.गिरिश्‍वर मिश्र ने बताया कि हिंदुस्‍तान के सबसे बड़े क्षेत्र में बोली जाने वाली हिंदी की स्थिति मेडिकल और न्‍याय के क्षेत्र में दुर्बल है। प्रो. मिश्र के अनुसार आज अंग्रेजी को समाज ने अपनी प्रतिष्‍ठा बना लिया है,लेकिन ज्ञान को समाज के हर वर्ग और व्‍यक्ति तक पहुंचाने के लिए हिंदी भाषा में लिखा जाना जरूरी है। समापन सत्र में मुख्‍य अतिथि के रूप में मौजूद विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री उमाशंकर गुप्‍ता ने हिंदी की जरूरत पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विचार और संचार के लिए हिंदी का कोई विकल्‍प नहीं है। उन्‍होंने एक उदाहरण देते हुए बताया कि व्‍यक्ति अपने कष्‍ट भरे समय में जिस भाषा में बात करता है वह उसकी मातृभाषा है। माननीय मंत्री जी के मुताबिक देश के अधिकांश प्रदेशों में आज ऐसी सरकार है जो हिंदी के अलावा भारतीय संस्‍कृति और परंपरा को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। उन्‍होंने कहा कि देश में हिंदी के विकास और प्रचार के लिए आज सबसे ज्‍यादा अनुकूल परिस्थितियां है। इसलिए इस क्षेत्र में चिंतन मनन से आगे बढ़कर व्‍यवहारिक काम करने की जरूरत है। जिससे मातृभाषा में ज्ञान सभी के लिए उपलब्‍ध हो सके।
कार्यशाला में पारित हुए प्रस्‍ताव


कला एवं समाज विज्ञान के विषयों से संबंधित 70,अभियांत्रिकी से संबंधित 138,पैरामेडिकल की 38,विज्ञान आधारित विषयों की 73 और वाणिज्‍य से संबंधित 30 किताबों के लेखन पर सहमति बनी।


संसदीय राज्‍य भाषा समिति के माननीय अध्‍यक्ष सत्‍यनारायण जटिया द्वारा आगामी लेखन कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा।


माननीय उच्‍च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया के निर्देशानुसार एक साल में चार बार इस तरह की कार्यशालाएं आयोजित की जाएगी,जिसमें लेखक और विषय विशेषज्ञ शामिल होंगे।


देश की हिंदी ग्रंथ अकादमियों और हिंदी सेवी संस्‍थानों द्वारा लिखी गई किताबों का प्रकाशन तकनीकी शब्‍दावली आयोग द्वारा खर्चा उठाया जाएगा।



कार्यशाला में ये हुए शामिल


वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्‍दावली आयोग,नई दिल्‍ली के अध्‍यक्ष प्रो.अवनीश कुमार

महात्‍मा गांधी अंतर्राष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय,वर्धा के कुलपति प्रो.गिरिश्‍वर मिश्र

बिहार हिंदी ग्रंथ अकादमी के प्रतिनिधि विश्‍वनाथ

छत्‍तीसगढ़ हिंदी ग्रंथ अकादमी के संचालक शशांक शर्मा

पंत एग्रीकल्‍चर विश्‍वविद्यालय,पंतनगर के प्रकाशन विभाग के प्रमुख डॉ. नरेश कुमार

आयुष विभाग,इंदौर के डॉ. ए.के. द्विवेदी

प्रकाशन संस्‍थान,नई दिल्‍ली के हरिश शर्मा

हिंदी माध्‍यम कार्यान्‍वय निदेशालय,दिल्‍ली की प्रतिनिधि प्रो.कुमुद शर्मा

राजस्‍थान हिंदी ग्रंथ अकादमी की निदेशिका डॉ. अनिता नायर

मध्‍यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी,भोपाल के संचालक प्रो. सुरेन्‍द्र गोस्‍वामी

हिंदी सलाहकार,भारत सरकार,हिमांचल की सदस्‍य डॉ. रीता सिंह

भारतीय दंत परिषद्,नई दिल्‍ली (साकेत नगर) भोपाल के डॉ. चंद्रेश शुक्‍ला

इग्‍नु दिल्‍ली के प्रतिनिधि प्रो.जगदीश शर्मा

माइक्रोसॉफ्ट,दिल्‍ली के प्रतिनिधि बालेंदु शर्मा



कार्यक्रम के अंत में विश्‍वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. एस.के. पारे ने सभी अतिथियों का आभार व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि तकनीकी विषयों और चिकित्‍सा के क्षेत्र में हिंदी के महत्‍व पर प्रकाश डाला। इस मौके पर अतिथियों के अलावा विश्‍वविद्यालय के सभी अधिकारी,कर्मचारी और शिक्षक मौजूद रहे।

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