श्योपुर(ईन्यूज एमपी)-नारी सम्मान की बात करने वाले राजनीतिक संगठन नारी सम्मान के प्रति कितने गंभीर हैं इसकी बानगी श्योपुर जिले की वह महिलाएं हैं जिन्होंने कभी जिला पंचायत अध्यक्ष, जनपद अध्यक्ष व नगरपालिका अध्यक्ष जैसे शीर्ष पदों पर निर्वाचित होकर अपने राजनीतिक कौशल का परिचय दिया। जब तक यह महिलाएं पदों पर रहीं तब तक प्रशासनिक अफसरों से लेकर राजनीतिक भी इनके इर्द-गिर्द घूमते रहे, लेकिन जैसे ही कुर्सी गई तो इन महिलाओं की पहचान भी गुमनामी में खो गई। जिले से लेकर शहर की पहली नागरिक का दर्जा पा चुकीं महिला जनप्रतिनिधियों को गुमनामी के अंधेरे में पहुंचाने में सबसे बड़ा योगदान राजनीतिक दलों का है। आरक्षण के चलते घरों में कैद रहने वाली महिलाओं को सार्वजनिक क्षेत्र में सेवा करने का अवसर त्रि-स्तरीय पंचायतराज एवं नगर निकाय में चुनाव के माध्यम से मिला। आरक्षित सीट पर कुछ महिलाएं पंच-सरपंच, जनपद सदस्य, जिपं सदस्य तो कुछ जनपद अध्यक्ष, जिपं अध्यक्ष और नगरपालिका अध्यक्ष जैसे पदों पर पहुंची। इन पदों पर पहुंचने के बाद पांच साल तक तो जिस दल के माध्यम से निर्वाचित होकर यह उक्त पदों पर पहुंची तब खूब नाम-सम्मान मिला। प्रशासन हो या राजनीतिक कार्यक्रम, हर आयोजनों में महिला जनप्रतिनिधियों को मुख्य या विशिष्ट अतिथि बनाया जाता था, लेकिन यहीं महिलाएं कुर्सी से उतर गईं तो उन्हें संगठन में मोर्चा और मंडल में सदस्य तक की जगह नहीं दी गई। प्रशासन तो भूला ही, राजनीतिक दलों ने भी इन महिला जनप्रतिनिधयों को ऐसी कोई जगह नहीं दी, जिससे इनका कद और नाम बढ़ता। गोली-बिस्किट बेच रहीं पूर्व जिपं अध्यक्ष 2009 में पंचायत चुनाव में भाजपा समर्थित प्रत्याशी के रूप में जिला पंचायत अध्यक्ष के पद पर निर्वाचित हुईं गुड्डी बाई आदिवासी अपना कार्यकाल समाप्त होते ही गुमनामी में पहुंच गईं। ऐसा भी नहीं है कि गुड्डीबाई महिला होने के नाते अध्यक्ष बनी हों। गुड्डीबाई की राजनीति में सक्रियता अपने बूते कराहल में 2014 का जनपद सदस्य का चुनाव जीतना है। चुनाव जीतने के बाद भी पार्टी ने गुड्डीबाई को अध्यक्ष पद के लिए अपना प्रत्याशी नहीं बनाया और न ही संगठन में कोई पद दिया। जनपद सदस्य होने के बाद भी आज गुड्डी बाई आजीविका चलाने के लिए अपने गृह गांव गुमठी में झोंपड़ी में गोली-बिस्किट की दुकान चला रही हैं। कांग्रेस की छवि सुधारने वाली कृष्णा को भूली कांग्रेस दो दशक पूर्व हुए निकाय चुनाव में कृष्णा गुप्ता कांग्रेस समर्थित नपाध्यक्ष निर्वाचित हुई थीं। कृष्णा गुप्ता के कार्यकाल में हुए विकास कार्यों को आज भी याद किया जाता है। ईमानदारी के साथ अपना कार्यकाल पूरा करने वाली कृष्णा गुप्ता के अच्छे कार्यकाल से कांग्रेस ने भी अपनी छवि उज्जवल करने का काम किया है। कभी कांग्रेस जिस कृष्णा गुप्ता के कार्यकाल को ईमानदारी व विकास भरा कार्यकाल बताकर विधानसभा, लोकसभा में अपने लिए वोट मांग चुकी है, उसी कांग्रेस ने अपने किसी भी संगठन में आज तक कृष्णा गुप्ता को कोई पद नहीं दिया है। एमए पास पूर्व जिपं अध्यक्ष पिंकी बनीं पंचायत सचिव आदिवासी महिलाओं में शिक्षा की नई इबारत गढ़ने वाली पिंकी आदिवासी ने अपने शिक्षा के बल पर नौकरी करने के बजाए राजनीति में आकर समाजसेवा करने का निर्णय लिया था। जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीतने के बाद पिंकी को कांग्रेस ने अपना समर्थित उम्मीदवार बनाकर जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचित कराया। जिपं अध्यक्ष रहने के दौरान पिंकी ने अपने समाज और आमजन के लिए बहुत कुछ किया, लेकिन पद से उतरने के बाद से ही पिंकी रसातल में पहुंच गईं। आजीविका चलाने के लिए वह जिस विभाग में जिले की सबसे बड़ी जनप्रतिनिधि थीं, उसी विभाग के सबसे छोटे कर्मचारी पद (पंचायत सचिव) के लिए आवेदन कर सचिव बन गईं, लेकिन यह नौकरी भी एक महीने ही रह पाई। आज पिंकी गुमनाम जीवन जी रही हैं। राजघराने से आईं बाई साहब को रास नहीं आई राजनीति समूचे बड़ौदा क्षेत्र में सम्मान के रूप में देखे जाने वाले राज परिवार की बहू राजलक्ष्मी सिंह बड़ौदा नगरपरिषद अध्यक्ष निर्वाचित हुई थीं। निर्दलीय रूप से हुए इस चुनाव में बाई साहब को कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बताया था। समाजसेवा का जज्बा मन में लिए अध्यक्ष पद पर काबिज हुईं बाई साहब के कार्यकाल को आज बड़ौदा की जनता ईमानदारी वाला व स्वर्णिम दौर मानती है। इसके बावजूद गंदी राजनीति की शिकार हुई बाई साहब को राजनीति से इतनी नफरत हुई, कि वह जैसे जनता की सेवा के लिए महल छोड़कर सड़कों पर आई थी, वैसे ही राजनीति छोड़कर वापस महल में चली गईं। कांग्रेस ने भी बाई साहब को वो सम्मान नहीं दिया, जिसकी वो हकदार थीं। यह महिलाएं भी शिखर छूकर, गुमनामी में खो गईं -विजयपुर नगर परिषद की सबसे सफल अध्यक्षों में गिनी जाने वालीं विमला कुशवाह ने कांग्रेस के बैनर तले चुनाव जीता, लेकिन कार्यकाल पूरा होने के बाद विमला का नाम कभी कांग्रेस में नहीं लिया गया। -जिपं की उपाध्यक्ष से लेकर अध्यक्ष रहीं रुक्मिणि जाट एक समय भाजपा की शीर्ष महिला नेत्रियों में थीं, लेकिन यह रुतबा कुर्सी पर बने रहते तक ही रहा। -रसालबाई मीणा श्योपुर जनपद की अध्यक्ष थीं तब तक हर आयोजन में मंच पर नजर आती थीं, अब घर की चारदीवारी तक सीमित हैं।