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Home मध्य प्रदेश शुरू होते ही ध्वस्त हो गई ई-वे बिल व्यवस्था, पहले ही दिन क्रेश हुआ पोर्टल....

शुरू होते ही ध्वस्त हो गई ई-वे बिल व्यवस्था, पहले ही दिन क्रेश हुआ पोर्टल....

इंदौर(ईन्यूज एमपी)- शोर-शराबे और पूरी तैयारी के दावों के बीच लागू हुई ई-वे बिल की व्यवस्था शुरू होते ही ध्वस्त हो गई। पहला ही दिन कारोबारियों के लिए परेशानी भरा रहा। तमाम कोशिशों के बावजूद व्यापारी ई-वे बिल जनरेट करने में नाकामयाब रहे। दोपहर तक तो पोर्टल ही क्रेश हो गया। माल परिवहन के लिए तैयार गाड़ियां ई-वे बिल के इंतजार में आगे ही नहीं बढ़ सकीं।

केंद्र सरकार के निर्देश के बाद प्रदेश में 1 फरवरी से ई-वे बिल अनिवार्य रूप से लागू हुआ है। 16 जनवरी से पोर्टल का ट्रायल चल रहा था। अब तक अधिकारी और वाणिज्यिककर विभाग दावा कर रहे थे कि पोर्टल की टेस्टिंग हो चुकी है। सिस्टम खासा आसान है और चंद मिनटों में ई-वे बिल की ऑनलाइन प्रक्रिया पूरी हो जाएगी।

विभाग प्रदेशभर में 400 से ज्यादा कार्यशाला और सेमिनार कर चुका है ऐसे में बड़ी परेशानी आने का तो सवाल ही नहीं है। ई-वे बिल को माल परिवहन की रफ्तार बढ़ाने वाली व्यवस्था करार दिया जा रहा है। हालांकि, पहले ही दिन सबकुछ उम्मीदों से उलट हुआ। पोर्टल कुछ घंटे भी नहीं चल सका और क्रेश हो गया। कई घंटे परेशान होने के बाद कारोबारियों के साथ कर सलाहकारों की भी नाराजगी फूट पड़ी। वे वाणिज्यिककर विभाग की हेल्प डेस्क पर फोन लगाकर समस्या दूर करने की मांग करने लगे। पहले हेल्प डेस्क से कहा गया कि समस्या दूर करने के लिए केंद्रीय स्तर पर जानकारी भेजी गई है। थोड़ी देर बाद मुख्यालय के अकिारियों ने भी फोन उठाना बंद कर दिया।

घंटों परेशान होते रहे

टैक्स प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन (टीपीए) के सचिव सीए जेपी सर्राफ के मुताबिक, पहले तो ई-वे बिल पोर्टल पर लिंक ही नहीं खुल रही थी। बाद में खुली तो वेरीफिकेशन कोड नहीं मिल रहा था। जैसे-तैसे उससे आगे बढ़े और लॉगइन किया तो सर्वर बिजी बताकर फिर बाहर कर दिया जाता। तमाम कारोबारी घंटों इसी प्रक्रिया में परेशान होते रहे।

इलाज नहीं पता

कर सलाहकार आरएस गोयल के मुताबिक, ऐसे तो कारोबार ही थम जाएगा। खास बात है कि ई-वे बिल के नियम में इस बात का तो उल्लेख है कि ई-वे बिल की वैता क्या रहेगी। गाड़ी बदलेगी तो क्या होगा। जांच में क्या होगा लेकिन कहीं ऐसा प्रावान नहीं डाला गया है कि इस तरह पोर्टल फेल हो या तकनीकी समस्या आएगी तो उसके निदान के लिए क्या रास्ता हो सकता है।

निजी कंपनियों का दबाव

ई-वे बिल के लिए एनआईसी के सर्वर पर अलग से पोर्टल बनाया गया है। इसके बावजूद सर्वर क्रेश होने पर हैरानी जताई जा रही है। जानकार आशंका जता रहे हैं कि जीएसटी के लिए पहले कई निजी आईटी कंपनियों को सेवा प्रदाता के लाइसेंस दिए गए थे। उन्होंने हजारों रुपए के सॉफ्टवेयर बनाए। अब ई-वे बिल बिना ऐसे सॉफ्टवेयर की मदद से जनरेट करने की व्यवस्था लागू की गई। कहीं न कहीं निजी कंपनियों के लाभ के लिए जान-बूझकर इस व्यवस्था में अड़चनें पैदा कि जा रही हैं।

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