भोपाल(ईन्यूज़ एमपी)- मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि माता-पिता अपने बच्चों के मित्र बनें। उन्हें प्यार से सिखायें। मध्यप्रदेश में राज्य सरकार कोशिश कर रही है कि बच्चों के बस्तों का बोझ कम हो। शिक्षा के तरीकों में बदलाव किया जा रहा है। मुख्यमंत्री श्री चौहान आज यहाँ समन्वय भवन में आयोजित राज्य स्तरीय 'मिल बाँचे मध्यप्रदेश' कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम में स्कूल शिक्षा मंत्री विजय शाह भी उपस्थित थे। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि जीवन उत्सव है। बच्चे ईश्वर का सबसे अमूल्य उपहार हैं। बच्चों के साथ बिताया समय सबसे सुन्दर होता है। बच्चों को आगे बढ़ाना और उन्हें सँवारना, समाज और हम सबका कर्तव्य है। माता-पिता बच्चों को समय दें और उनकी भावनाओं को समझें। बच्चे देश का भविष्य हैं, उन्हें किसी भी स्थिति में कुंठित नहीं होने दें। बच्चों के प्रथम गुरू माता-पिता होते हैं। माता-पिता से बच्चे खुलकर बातें करें, यह बच्चों के समग्र विकास के लिये बहुत जरूरी है। बच्चों में डर हो तो उनका स्वाभाविक विकास नहीं होता। ज्ञान जरूरी है पर रटना नहीं मुख्यमंत्री ने कहा कि शिक्षा के तीन उद्देश्य होते हैं ज्ञान, कौशल और नागरिकता के संस्कार देना। शंकराचार्य जी ने कहा है कि शिक्षा वह है जो जीने की राह दिखाये। स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि शिक्षा वह है जो इंसान को इंसान बनाये। पीढ़ियों द्वारा संचित ज्ञान आने वाली पीढ़ियों को देना होता है। ज्ञान जरूरी है लेकिन केवल रटने से काम नहीं चलेगा। इसे आचरण में उतारना जरूरी है। उन्होंने बच्चों से कहा कि जैसा आचरण होता है, वैसी उनकी छवि बनती है। अच्छा सोचोगे तो अच्छे बनोगे। माता-पिता और शिक्षकों का दायित्व है कि बच्चों के स्वाभाविक गुणों को पहचानें और बढ़ावा दें। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने ग्राम जैत के अपने शिक्षक श्री रतनचंद जैन का स्मरण किया जिन्होंने उन्हें अच्छा इंसान बनने की शिक्षा दी। उन्होंने कहा कि बच्चों को स्कूलों में डर नहीं बल्कि आनंद मिलना चाहिये। देश को अच्छे गुणों वाले नागरिकों की जरूरत है। हर कोई ईमानदारी से अपना कर्तव्य करे, यही नागरिकता के संस्कार हैं।