रीवा/सीधी (ईन्यूज़ एमपी): "शिक्षा का मंदिर" कहलाने वाले स्कूल अब रिश्वत की मंडी में तब्दील हो चुके हैं, और यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि रीवा और सीधी जिले के हालात चीख-चीखकर इसका प्रमाण दे रहे हैं। रीवा के सीएम राइज पीके स्कूल में एक मेधावी छात्रा ने जब दाखिले के लिए आवेदन किया, तो उसका नाम सूची में चयनित हो गया। पर कहानी यहीं खत्म नहीं होती — असली ड्रामा तो इसके बाद शुरू होता है। छात्रा ने दाखिले की आस में कलेक्टर से लेकर डीईओ तक सारे दरवाजे खटखटाए। कलेक्ट्रेट से पत्र गया डीईओ ऑफिस, वहां से स्कूल के प्राचार्य को आदेश जारी हुआ। लेकिन पीके स्कूल के ‘प्राचार्य महोदय’ संवेदनशीलता की बजाय संवेदनहीनता के सिंहासन पर बैठे रहे! छात्रा दो दिनों से स्कूल गेट पर इंतज़ार कर रही है, लेकिन साहब हैं कि शायद "कम फीस नहीं, सीधा रिश्वत वाला फॉर्मेट लाओ, तभी होगी मुलाकात" की मानसिकता पर अड़े हुए हैं। कलेक्टर के आदेशों की उड़ रही धज्जियां, और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव तक अपील के बावजूद व्यवस्था कान में तेल डाले सो रही है। सवाल यह है कि जब एक सामान्य छात्रा की गुहार सुनने वाला कोई नहीं, तो प्रदेश में "सर्वशिक्षा अभियान" और "लाडली लक्ष्मी" जैसे नारों का क्या हश्र हो रहा होगा? और मामला सिर्फ रीवा तक सीमित नहीं है। सीधी जिले के उत्कृष्ट विद्यालय क्रमांक 1 में ‘रुपया दो - सीट लो’ स्कीम खुलेआम चल रही है। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो 15-20 हजार रुपए की चढ़ौती देकर कम अंक लाने वाले छात्रों का भी धड़ल्ले से एडमिशन हो रहा है। जबकि टॉपर छात्रों को “फॉर्म में कुछ गड़बड़ है”, “सीट फुल है” या “प्राचार्य छुट्टी पर हैं” जैसे बहाने देकर बाहर का रास्ता दिखा दिया जा रहा है। क्या शिक्षा का अधिकार अब सिर्फ पैसे वालों का विशेषाधिकार बनकर रह गया है? कहीं ऐसा तो नहीं कि विद्यालयों में ‘ज्ञान’ की नहीं, *‘घूस’ की परीक्षा ली जा रही है’? और अगर यही स्थिति रही तो जल्द ही हमें “रैंक” की नहीं, “रकम” की मेरिट लिस्ट देखने को मिलेगी। अब देखना यह होगा कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव तक पहुंची यह अपील सत्ता के गलियारों में गूंज पैदा करती है या फिर एक और "कागजी कार्रवाई की कब्रगाह" में दफ्न हो जाती है। क्योंकि यहां सवाल सिर्फ एक छात्रा का नहीं, शिक्षा व्यवस्था की आत्मा का है — जो शायद अब वेंटिलेटर पर है।