सीधी (ईन्यूज़ एमपी): संजय टाइगर रिजर्व का दिल कहे जाने वाला रूदा जंगल, बीते दिनों ऐसी आग की भेंट चढ़ा कि हरियाली की सांसें घुट गईं, जंगली जीवन सिसकता रहा और वन विभाग की नाकामी धधकती रही! लेकिन जंगल जलने से बड़ा सवाल ये है—क्या आग से भी ज़्यादा खतरनाक है सिस्टम की चुप्पी और संवेदनहीनता? गांव में गूंजा आरोपों का शोला: गांव के सरपंच बंशलाल सिंह ने खुले मंच से वनरक्षक कालीरमन सिंह पर न सिर्फ़ लापरवाही, बल्कि तानाशाही और उत्पीड़न के गंभीर आरोप ठोके हैं। "जब पूरा गांव जंगल बचाने की लड़ाई लड़ रहा था, तब वनरक्षक साहब नदारद थे। आग से नहीं, उनके रवैए से ज्यादा जले हैं हम!" – बंशलाल सिंह, सरपंच ग्रामीण बोले—रक्षक नहीं, भक्षक बन गया है तंत्र! गांववालों का कहना है कि वनरक्षक बिना वजह दबाव बनाते हैं, फर्जी केसों में फंसाते हैं, और जब वक़्त आता है कर्तव्य निभाने का, तो गायब हो जाते हैं! शिकायतें पहुंचीं, लेकिन कार्रवाई गायब! ग्रामीणों की मानें तो रेंजर स्तर तक कई बार शिकायतें की गईं, मगर अब तक सब कुछ फाइलों में दफ़न है। "अगर अब भी हमारी आवाज़ नहीं सुनी गई तो सड़कों पर उतरेंगे," ये चेतावनी अब सिर्फ़ अल्फाज़ नहीं, भविष्य का अलार्म है। प्रशासन के लिए अल्टीमेट टेस्ट! अब सवाल यह है कि क्या कालीरमन सिंह पर होगी कोई कार्यवाही? या फिर संजय टाइगर रिजर्व की साख और गांववालों की आस्था दोनों राख होती रहेगी? एक ओर जंगल की आग बुझी नहीं, दूसरी ओर भरोसे की आग सुलग रही है—कब और कैसे बुझेगी ये आग, अब यही देखना बाकी है!