नई दिल्ली (ईन्यूज़ एमपी): वकीलों के लिए पूर्णकालिक पत्रकारिता का रास्ता अब बंद हो गया है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने सुप्रीम कोर्ट को स्पष्ट किया है कि अधिवक्ता वकालत के साथ-साथ पूर्णकालिक पत्रकारिता नहीं कर सकते। यह निर्णय BCI के आचरण नियमों के तहत नियम 49 की शर्तों का पालन करते हुए लिया गया है, जो वकीलों की व्यावसायिक गतिविधियों को सख्ती से नियंत्रित करता है। क्या है मामला? सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने बीसीआई से सवाल किया कि क्या वकील पत्रकारिता में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं? बीसीआई के वकील ने जवाब दिया कि अधिवक्ताओं को वकील और पत्रकार के रूप में दोहरी भूमिका निभाने से प्रतिबंधित किया गया है। यह मामला एक अधिवक्ता की याचिका से जुड़ा है, जो स्वतंत्र पत्रकार के रूप में भी काम करता था। याचिकाकर्ता ने अपने खिलाफ दर्ज मानहानि के मामले को खारिज करने की मांग की थी। याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि उनका मुवक्किल अपनी कानूनी प्रैक्टिस पर ध्यान केंद्रित करेगा और पत्रकारिता गतिविधियों से पूरी तरह से हट जाएगा। इसके जवाब में कोर्ट ने बीसीआई के उस रुख को स्वीकार किया, जिसमें अधिवक्ताओं के लिए पूर्णकालिक पत्रकारिता को अवैध बताया गया है। इस मामले की अगली सुनवाई फरवरी 2025 में होगी, जब कोर्ट मानहानि मामले के गुण-दोष का विश्लेषण करेगा। यह निर्णय वकीलों की पेशेवर प्रतिबद्धता बनाए रखने के प्रति बीसीआई के सख्त रुख को रेखांकित करता है। क्यों है यह निर्णय महत्वपूर्ण? यह घटनाक्रम उन मुद्दों को सामने लाता है जो कानूनी और मीडिया पेशे में एक साथ सक्रिय रहने से उत्पन्न हो सकते हैं। बीसीआई का यह कदम पेशेवर प्रतिबद्धता और नैतिकता को प्राथमिकता देने की दिशा में अहम माना जा रहा है।