भोपाल(ईन्यूज़ एमपी)-बदलाव की बयार से राजनीति भी लगातार प्रभावित हो रही है। कभी सीटों पर काबिज राजनेताओं और उनके समर्थकों के बीच इस बात की चर्चा होती थी कि सीट पर लीड कितनी बड़ी होगी, लेकिन बीते दो चुनाव में नया ट्रेंड सामने आया है। लीड तो नाममात्र की रह ही गई है पूरी जद्दोजहद सीट बचाने की होने लगी है। वर्ष 2013 और वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव का विश्लेषण करने पर हम पाते हैं कि इंदौर जिले की नौ विधानसभा सीटों में से आठ सीटें ऐसी हैं जहां वर्ष 2013 के मुकाबले वर्ष 2018 में हार-जीत का अंतर कम हुआ। शिवराजसिंह मंत्रिमंडल में 10 मंत्री इंदौर संभाग से थे। इनमें से पांच मंत्रियों के विधानसभा सीट पर 2013 के मुकाबले 2018 में भाजपा की लीड कम हुई थी। हार-जीत का अंतर कम होना राजनीतिक दलों की चिंता बढ़ा रही है। अगर ऐसा ही ट्रेंड वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में भी बना रहा तो राजनीतिक दलों की मुश्किल बढ़ना तय है। इंदौर विधानसभा क्षेत्र एक की बात करें तो वर्ष 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में इस सीट पर हार-जीत का अंतर 54176 था। भाजपा के सुदर्शन गुप्ता को जीत मिली थी। दूसरे स्थान पर निर्दलीय प्रत्याशी थे। कांग्रेस यहां तीसरे नंबर पर रही थी, लेकिन वर्ष 2018 में इस सीट पर हार-जीत का अंतर सिर्फ 8163 रहा। कांग्रेस ने यहां से जीत दर्ज की थी। भाजपा के लिए सुरक्षित सीट मानी जाने वाली इंदौर विधानसभा क्षेत्र दो में भी वर्ष 2013 के मुकाबले वर्ष 2018 में हार-जीत का अंतर कम हुआ है। वर्ष 2013 में भाजपा के रमेश मेंदोला ने 91017 मतों से जीत दर्ज की थी लेकिन वर्ष 2018 में लीड 20 हजार कम हो गई और वे 71011 मतों से जीत दर्ज कर सके। यहां भी कम हुआ हार-जीत का अंतर इंदौर विधानसभा क्षेत्र तीन से वर्ष 2013 में भाजपा की उषा ठाकुर ने कांग्रेस के अश्विन जोशी को 13318 मतों से पराजित किया था। पांच वर्ष बाद 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां भी हार-जीत का आंकड़ा कम हुआ। भाजपा के आकाश विजयवर्गीय 5751 मतों से जीत दर्ज कर सके। जिन सीटों पर हार-जीत का अंतर कम हुआ है, उनमें इंदौर विधानसभा क्षेत्र 5 भी शामिल है। वर्ष 2013 में इस सीट पर भाजपा के महेंद्र हार्डिया ने कांग्रेस के पंकज संघवी को 14418 मतों से पराजित किया था, लेकिन वर्ष 2018 के चुनाव में वे जीत का अंतर कायम नहीं रख सके। उन्होंने कांग्रेस के सत्यनारायण पटेल पर जीत तो दर्ज की लेकिन हार-जीत सिर्फ 1133 मतों की रही। राऊ विधानसभा सीट पर वर्ष 2013 और वर्ष 2018 दोनों चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, लेकिन हार-जीत का अंतर कम हुआ। वर्ष 2013 में कांग्रेस के जीतू पटवारी ने भाजपा के जीतू जिराती को 18559 मतों से पराजित किया था, लेकिन वर्ष 2018 में पटवारी सिर्फ 5703 मत से जीत दर्ज कर सके। उन्होंने भाजपा के मधु वर्मा को पराजित किया था। देपालपुर विधानसभा सीट पर भी हार-जीत का अंतर वर्ष 2013 के मुकाबले वर्ष 2018 में कम हुआ। वर्ष 2013 में यहां से भाजपा के मनोज पटेल ने सत्यनारायण पटेल पर 30197 मतों से पराजित किया था, लेकिन वर्ष 2018 में हार-जीत सिर्फ 9044 मतों की रही। कांग्रेस के विशाल पटेल ने भाजपा के मनोज पटेल को पराजित किया था। सांवेर विधानसभा सीट पर वर्ष 2013 में भाजपा को जीत मिली थी। पार्टी के राजेश सोनकर ने कांग्रेस के तुलसीराम सिलावट को 17583 मतों से पराजित किया था। हार-जीत का यह अंतर कायम नहीं रह सका। वर्ष 2018 में हुए चुनाव में तुलसी सिलावट ने सोनकर को 2945 मतों से पराजित किया। मंत्रियों के सामने भी जीत के आंकड़े को बरकरार रखने का संकट इंदौर संभाग से मंत्रिमंडल में शामिल पांच मंत्रियों के सामने जीत के अंतर को बरकरार रखने का संकट रहा है। इनमें इंदौर जिले से दो मंत्री उषा ठाकुर और तुलसीराम सिलावट शामिल हैं। इसके अलावा हरसूद से विजय शाह, जावद से ओमप्रकाश सकलेचा और सुवासरा से हरदीपसिंह डंग शामिल हैं। हरसूद विधानसभा सीट पर वर्ष 2013 में विजय शाह ने 43571 मतों से जीत दर्ज की थी, लेकिन वर्ष 2018 में वे सिर्फ 18949 मतों से जीत सके। इसी तरह जावद सीट पर ओमप्रकाश सकलेचा को वर्ष 2013 में 13651 मतों से विजय मिली थी, लेकिन वर्ष 2018 में यह अंतर सिर्फ 4271 पर आ गया। सुवासरा विधानसभा सीट पर वर्ष 2013 में 7125 मतों से हार-जीत हुई थी लेकिन वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में हरदीपसिंह डंग सिर्फ 350 मतों से जीत दर्ज कर सके।