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महिलाओं को रोग से बचावे के लिए ССअरोग्य СС ब्रांड से सेनेटरी पैड बना रही आम्बाखोदरा की पैडवुमन

झाबुआ बबलू वैरागी(ईन्यूज एमपी)-समाचार पत्र में प्रकाशित खबर आधी आबादी का स्वास्थ्य खतरे में खबर के बाद सरकार ने आंगनवाडी केन्द्रो, स्कूलों एवं काॅलेजों में सेनेटरी नैपकिन रखने के लिए ССउदिता कार्नरСС बनवाये। उसके बावजूद भी पढी लिखी महिलाओं और बालिकाओ को छोड दिया जाये तो ग्रामीण क्षेत्रो में प्रायः महिलायें सेनेटरी नेपकिन का उपयोग कम हीं करती है। लेकिन झाबुआ के गांव आम्बाखोदरा की जमुना स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने गाॅव की सोच ही बदल दी और समय के साथ महिलाओं में स्वच्छता एवं स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता आई और गांव की सभी महिलाए सेनेटरी नेपकिन का ही उपयोग करती है। साक्षरता में पिछडा कहे जाने वाले आदिवासी अंचल झाबुआ के छोटे से गांव आम्बाखोदरा की 8 वी तक पढी हेमलता पति तेरसिंह भाबोर ने बडे हौसले का परिचय दिया और गांव के पुरूषो के विरोध के बाद भी महिलाओं को साथ लेकर महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए सैनेटरी पेड बनाने का काम शुरू कर दिया। महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए आम्बाखोदरा की जमुना स्वयं सहायता समूह की सदस्य हेमलता, गुडडी एवं भूरी ने पहल की एवं महिलाओं ने सेनेटरी पैड तैयार करने का काम प्रारंभ किया। जमुना स्वयं सहायता समूह की 8 महिलाएं मिलकर सेनेटरी नेपकीन बनाने का काम कर रही है सस्ती और अच्छी गुणवत्ता के सेनेटरी नेपकीन का नाम समूह की महिलाओं ने ССआरोग्य СС रखा यानि रोग से दूर रखने वाला।
चर्चा के दौरान समूह की महिलाओ हेमलता, भूरी व गुडडी ने बताया कि दो साल पहले शुरू किये गये इस काम की बात जब उन्होने महिलाओं एवं गांव के पुरूषो के बीच रखी तो काफी विरोध हुआ और काम शुरू कर दिये जाने के बाद भी गांव के कुछ पुरूषों ने मशीन बाहर फेकने तक की बात कह डाली। महिलाओं ने बताया कि उनके पति ने भी उन्हें इस काम को छोडने के लिए कहां लेकिन हेमलता एवं उनकीे साथी महिलाओं ने पुलिस में शिकायत करने की धमकी दी तो विरोध बंद हो गया। गाॅव की बुजुर्ग महिलाएं भी इसे बहुत बुरा मानती थी और इस तरफ आना बंद कर दिया था। सब इसे गंदा काम कहते थे। सब कहते थें गांव में क्या खुलकर ऐसा काम होता है। कुछ महिलाएॅ तों जब यहां आती थी तो मुॅह पर कपडा रखकर आती थी पेड बनते देखना उन्हें घिनौना लगता था लेकिन धीरे-धीरे सोच बदल गई। सबसे पहले समूह की महिलाओ ने ही माहवारी के समय कपडा की जगह बनाये गये सेनेटरी पैड इस्तेमाल करना शुरू किए। धीरे-धीरे गांव की दूसरी महिलाओं ने अपने और बहु-बेटियों के लिए पैड खरीदे। इसके फायदे देखे, तो उपयोग बढता चला गया। अब सब खुश है और कोई विरोध नहीं करता।

8 पैेड का एक पैकेट 25 रूपये में

​ आम्बाखोदरा के जमुना स्वयं सहायता समूह की महिलाओ ने बताया कि समूह की 8 महिलाएं मिलकर यह कार्य करती है। गांव में स्कूल के पुराने कमरे में सेनेटरी पैड बनाती है। एक पैकेट 25 रूपये में गांव की महिलाओं को बेचती है, जिसमें 8 पैेड होते है। महिलाओ के स्वयं सहायता समूह की बैठक में, ग्राम सभा में काउंटर लगाकर पैड का विक्रय करते है। बाजार की अपेक्षा सस्ता होने से आम्बाखोदरा के अलावा आस-पास के तीन-चार गांव की महिलाएं भी सेनेटरी पैड खरीदती है।
ऐसे हुई शुरूआत
ग्रावं में ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत बने स्व. सहायता समूह की सदस्य हेमलता भाबोर, गुडडी एवं भूरी ने सबसे पहले ये विचार समूह की महिला साथियों के सामने रखा। ग्रामसभा में बात रखी। ना-नुकुर के बाद सब सहमत हो गए। हेमलता भाबोर, गुड्डी पारगी ओैर भूरी भबोर ने मिलकर मिशन के अधिकारियों से मिलकर लोन मांगा। शासन से समूह को सेनेटरी नेपकिन यूनिट लगाने के लिए 3 लाख 60 हजार रूपए का लोन मिला। जिसमें से 2 लाख 20 हजार में सारी मशीने आ गई और बाकि पैसे से कच्चा माल ले लिया। आजीविका मिशन से ही तीन दिन का प्रशिक्षण मिला ओर पंद्रह दिन तक अभ्यास किया। फिर अभ्यस्त हो गए। समूह की महिलाओं ने अब तक पैड बेच-बेचकर डेढ लाख रूपए का लोन भी चुका दिया।
​ जमुना स्वयं सहायता समूह की सदस्य हेमलता भाबोर भूरी और गुडडी पारगी ने बताया कि मासिक धर्म से जुडी बातो को लेकर खुलकर बात करने की जरूरत है। ये महिलाओं की सेहत से जुडा मामला है। गांव की महिला काली राजेश गुंडिया का कहना है कि कपडे को चोरी-छिपे फेकना या साफ करना पडता था। बहू-बेटियो के लिए ये बडी परेशानी थी। अब सब कुछ बदल गया है। गांव की महिला भूरी पति झितरा ने बताया कि पहले जब मंै माहवारी के समय कपडा उपयोग करती थी, तो कुछ स्वास्थ्य संबंधी परेशानी महसूस होती थी और शर्म के वजह से मैं किसी को बता भी नहीं पाती थी। जबसे सेनेटरी पैड उपयोग करना प्रारंभ किया है, स्वास्थ्य संबंधी समस्या समाप्त हो गई है।

ऐसे बनाती है पैड
​हेमलता भूरी और गुडडी ने बताया कि बुड पल्प और जेल शीट को पल्वीलाइजर में पीसकर रूई बनाते है। सांचों में रखकर प्रेसिंग मशीन से दबाकर आकार दिया जाता है। फिर साफ्ट टिशु पेपर और ब्ल्यू शीट से कवर करके पैड बनाते है। इनकी सीलिंग कर अल्ट्रा वाॅयलेट स्टरलाइजर में डालकर रखते है। उसके बाद संक्रमण मुक्त पैड की पैकिंग की जाती है।

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