ग्वालियर(ई न्यूज एमपी)- दो दिन तक 130 गरीबों के आशियाने पर चली जेसीबी के पीछे शहर विकास के बड़े ताने-बाने नहीं थे, बल्कि पार्किंग का विवाद था। जड़ेरुआ रोड किनारे रहने वाले किसान श्रीकृष्ण पचौरी के घर के आगे बने कच्चे घर के कारण वे कार पार्क नहीं कर पाते थे और निकलने में परेशानी आती थी। आपस में बात हुई, विवाद हुआ और बात नहीं बनी तो श्रीकृष्ण ने अपने दोस्तों के माध्यम से कोर्ट में याचिका लगवा दी। नतीजन कोर्ट ने जड़ेरुआ रोड पर शासकीय भूमि से अतिक्रमण हटाने के आदेश जारी कर दिए। इस तरह एक श्रीकृष्ण पचौरी का विवाद 130 परिवारों को भुगतना पड़ गया। विवाद से तुड़ाई तक : श्रीकृष्ण और बेताल सिंह 40 साल पहले जड़ेरुआ रोड पर बेताल और उसकी पत्नी रामश्री परिहार ने कच्चा मकान बनाया था। इसके बाद श्रीकृष्ण पचौरी ने कुछ समय बाद प्लॉट खरीदा जो बेताल के कच्चे मकान के पीछे ही था। श्रीकृष्ण्ा ने बताया कि प्लॉट देने वाले ने कहा था कि कुछ समय बाद बेताल के कच्चे मकान को हटवा देगा। इसके बाद जब बेताल का मकान नहीं हटा तो बेताल से आपत्ति की। श्रीकृष्ण के मकान के मुख्य गेट से थोड़ा आगे ही कच्चा मकान होने के कारण कार पार्किंग नहीं हो पा रही थी तो बेताल से मकान बेचने को कहा। इस पर बेताल ने इनकार कर दिया तो विवाद हुआ। श्रीकृष्ण ने अपने दोस्तों को यह बात बताई तो दोस्त रामनरेश यादव ने हाईकोर्ट में याचिका लगा दी। पिछले ढ़ाई साल से यह याचिका चल रही थी और आदेश होने के बाद पालन नहीं हुआ तो अवमानना याचिका लगाई गई। इसके बाद कोर्ट ने सरकारी भूमि से अतिक्रमण हटाकर पालन रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए। कोर्ट का आदेश ढाई साल पहले श्रीकृष्ण पचौरी ने हाईकोर्ट में अपने दोस्त रामनरेश यादव सहित अन्य के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका लगवाई थी कि जड़ेरुआ रोड पर सरकारी भूमि पर कब्जा है। इसमें प्रशासन, निगम और पुलिस को पार्टी बनाया गया। फाइनल ऑर्डर कोर्ट ने 21 अगस्त 2017 को दिया था, इसके बाद 16 नवंबर को सुनवाई हुई, जिसमें सरकार ने कहा कि 113 आवास बने हैं। अवमानना दायर हुई। इसके बाद 8 जनवरी को सुनवाई हुई तो सरकार ने एक माह का समय मांगा, लेकिन कोर्ट ने 22 जनवरी को पालन प्रतिवेदन देने के आदेश दिए। अवमानना दायर होने के क्रम में प्रशासन ने बेदखली के नोटिस जारी किए और हाईकोर्ट से समय मांगा। रामश्री परिहार की ओर से भी पिटीशन लगाई गई थी जो विथड्रॉल हो गई। मलबे के ढेर पर जिंदगी, बच्चे भी स्कूल नहीं गए क्योंकि ईंटें बीननी थीं दो दिन की कार्रवाई के बाद जिनके मकान टूटे,उनकी जिंदगी दिन-रात अब मलबे के ढेर पर गुजर रही है। बच्चे भी स्कूल नहीं जा रहे क्योंकि मलबे के ढेर से ईंटें बीनने के काम में उनको लगा दिया था। सही ईंटें उठाकर एकतरफ कर उनको बेचकर कुछ पैसे मिल जाएं, इसमें ही पूरा परिवार लगा था। रातभर ठंड के बीच कोई त्रिपाल में छिपा बैठा रहा तो कोई बच्चों को सुलाकर खुद घूम रहा था। नित्य क्रिया के लिए सरकारी शौचालय ही सहारा बना हुआ है। कुछ लोगों ने किराए से आसपास कमरे ले लिए, लेकिन जिन पर पैसे नहीं वे सड़क पर ही चूल्हे जलाकर बच्चों का पेट पाल रहे हैं। आर्मी की दीवार से सटकर कुछ लोगों ने अपना सामान रख दिया तो सोमवार को आर्मी वालों ने वहां से सामान हटाने को कह दिया।